Monday, December 13, 2010

देश का अपमान, फिर भी हमारे नेताजी महान !

10:37 PM

 आज कल कांग्रेस पार्टी के नेताओं की मनोदशा दिन पर दिन बिगड़ती ही जा रही है। कांग्रेस के बड़े बड़े महारथी लगातार धर्म,आतंकवाद पर गैर जरूरी बयान देकर देश के लोगों को गुमराह करने में लगे हुए हैं। जिससे अराजकता का महौल पैदा हो रहा है। अपराध हो या आतंकवाद दोनों पर लगाम लगाने की बजाय जनता को मूर्ख बनाकर भ्रष्टाचार के गंभीर मुद्दों से भटकाया जा रहा है। मंत्री हो या महासचिव सभी ने ठान ली है कि काम नहीं करेंगे सिर्फ बयान देंगे। जिससे भ्रष्टाचार में फंसी कांग्रेस सरकार को कुछ तो राहत दे सकें। अपराधियों और आतंकियों को प्रोमोशन दे रही सरकार के बेलगाम होते मंत्री अपने बयानों में अब देश को तोडने वाली भाषा इस्तेमाल भी कर रहे हैं।कांग्रेसी नेताओं ने आतंकवाद और अपराधीकरण पर औने-पौने बयान देकर इनकी परिभाषाएं ही बदल दी हैं। ऐसे ही कुछ किया है वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह और गृहमंत्री चिदंबरम ने जो कि देश विरोधी बयान देने के मामले में बुरी तरह फंस गए हैं।


दिग्गी राजा इस बार बुरे फंसे हैं, कहीं पार्टी से हाथ ना धो बैठें

दिग्विजय सिंह ने मुंबई हमले में मारे गए शहीद हेमंत करकरे पर दिए बयान में कहा-“हेमंत करकरे को हिंदू आतंकवादियों से बड़ा खतरा था। मुंबई हमले के कुछ घंटे पहले मेरी उनसे बात हुई थी, लेकिन रिपोर्ट में कहा गया की पाकिस्तानी आतंकियों की गोली मारी”।दिग्विजय सिंह जैसे नेता जिनके विवादास्पद बयानों से कांग्रेस को कई बार शर्मिंदा होना पड़ा है इस बार भी कांग्रेस ने उनका निजी बयान बताकर पल्ला झाड़ लिया लेकिन दिग्गी राजा तो अड़े हुए हैं। सबूत देने की बात कर रहे हैं। लेकिन सवाल ये उठता है उन्होंने कैसे इस बात को 2 साल तक पचाए रखा।

शहीद एटीएस चीफ हेमंत करकरे की पत्नी
दिग्विजय ने मुंबई हमले की याद फिर ताजा करके शहीद करकरे की विधवा पर सैंकड़ों तीरों की तरह वार किए हैं,बजाय माफी मांगने के दिग्विजय सिंह ने बीजेपी पर ही आरोप जड़ दिए। बात सही है कांग्रेस का पुराना चलन है,चोरी तो चोरी ऊपर से सीना जोरी...। क्या ये आतंकवाद का धर्मों में बंटवारा करके देश को बांटने की ओर इशारा है या फिर सुर्खियों बने रहने के लिए एक मनगढ़ंत कहानी है। करकरे पर बयान देना दिग्गी राजा के लिए कितना खतरनाक साबित होता है ये तो आनेवाला वक्त ही बताएगा लेकिन दिग्विजय साहब को देश की जनता को ये बताना होगा कि हिंदु आतंकवाद क्या होता है, मुस्लिम, सिख और ईसाई आतंकवाद क्या होता है।

खैर की क्या कहें हमारे गृह मंत्री का भी हाल यही है...चिदंबरम को मुंबई में हमले के बाद गृह मंत्री की गद्दी दी गई थी। जनता को शिवराज पाटिल जैसे वीआईपी गृह मंत्री की नाकामी के बाद चिदंबरम से काफी कुछ उम्मीदें थीं। लेकिन चिदंबरम भी देश को जोड़ने के बजाय तोड़ने वाले बयान दे रहे है।

शर्मसार होती देश की राजधानी
दिल्ली में बढ़ते अपराध को रोकने में नाकाम चिदंबरम साहब ने जनता पर ही धावा बोल दिया। जिसकी सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी स्वयं उनके मंत्रालय की है। अपने बयान में कहा..“दिल्ली में बाहर आए लोग अनाधिकृत कॉलोनियों में बस गए है वही दिल्ली में अपराध कर रहे हैं”। इस बयान के बाद पूरे देश चिदंबरम की ऐसी भद्द पिटी जिसके बाद उन्हे 3 घंटों के भीतर उनकी ओर बयान वापस लेने की खबर आ गई।
बोलती बंद.. गृह मंत्री कह रहे हैं अब कभी कुछ नहीं बोलूंगा

विपक्ष और सत्ता पक्ष के भारी विरोध के चलते चिदंबरम ने अपने दूसरे बयान में कहा- मैं भी बाहर से आया हूं, मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। वाह चिदंबरम साहब दिल्ली में पूरे भारत से लोग आते हैं और देश की राजधानी पर पूरे देश का हक है। राजधानी की सुरक्षा क्या केवल विदेशियों के लिए है जो कि सिर्फ कॉमनवेल्थ में ही दिखाई पड़ी थी। क्या राजधानी के लिए सुरक्षा के नियम इतने सख्त नहीं होने चाहिए कि परिंदा भी पर ना मार सके। लेकिन आप तो उलटे जनता पर ही चढ़ गए।राजधानी में सुरक्षा तंत्र बूढ़ा हो चुका और टूटी खाट पर लेटकर पानी मांग रहा है। लगातार हो रहे गैंगरेप,मर्डर चोरियों से दिल्ली पुलिस के काम करने के तरीके पर सवालिया निशान लगा दिया है ऐसे में कोई आतंकी हमला हो जाता है तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। इससे पहले भी दिल्ली की मुख्यमंत्री और शीला दीक्षित और राज्यपाल तेंजेंदर खन्ना भी गृह मंत्री जैसे ही बयानों की दौड़ में शामिल हो चुके हैं।

क्या देश का कानून ऐसे जिम्मेदार मंत्री और नेताओं के खिलाफ कुछ नहीं कर सकता। क्या ऐसे बयानों पर इनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं करनी चाहिए। लेकिन सरकार को देश की एकता और अखंडता से लगाव नहीं और ना ही शासन चलाने की मंशा तभी तो हुर्रियत नेता गिलानी और अरूंधति रॉय के कश्मीर पर दिए देश विरोधी बयानों में सरकार को कुछ गलत दिखाई नहीं दिया। वहीं अफजल गुरू की फाइल लटका कर उसे फांसी पर लटकने नहीं दे रही है।

अब ये तस्वीर बिल्कुल साफ हो चली है कि सरकार नाकारा है। सत्ता में बने रहने के लिए आम लोगों की बलि चढ़वा रही है। अपनी अक्षमता से सरकार ने विपक्ष एकजुट होने में खूब मदद की है जो सरकार को किसी भी मुद्दों पर पछाड़ने के लिए तैयार बैठी है। इन नेताओं के बयानों से कहीं इतने हालात न बिगड़ जाएं कि ये दशकों तक सत्ता को सुख न भोग पाए। राजनीति के इन महान नेताओं देश की जनता का अपमान का कोई हक नहीं बनता ऐसे नेता दोबारा सत्ता में न आ पाए जिसके लिए हम,आपको ही प्रयास करने होंगे।

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Thursday, December 2, 2010

क्या सत्ता के दलाल बनते जा रहे हैं पत्रकार?

2:23 PM

बुरे फंसे प्रभु, वीर और बरखा

लोकतंत्र का चौथे स्तंभ पत्रकारिता में गुंडे तो पहले से थे ही अब दलाल भी घुस गए हैं। अधिकतर मीडिया समूह अब दलाली का अखाड़ा बन गए हैं। ऐसा कुछ दिनों पहले कॉरपोरेट घरानों के लिए काम करने वाली नीरा राडिया के साथ अख़बारों और टेलिवीज़न के नामचीन पत्रकारों की बातचीत के टेप प्रकाशित किए गए थे जिनमें ये पत्रकार डीएमके के नेता . राजा को मंत्रिमंडल में शामिल करवाने की पैरवी करते नज़र आए या फिर अंबानी बंधुओं के झगड़े में पक्ष लेते नज़र आए। ये सभी मीडिया के मठाधीश माने जाते हैं जिनकी बातों पर लोग आंखें मूंदकर विश्वास कर लते हैं, इन टेपों से मीडिया जगत में सनसनी मची हुई है, जिनके नाम इन टेप में आए है जिनमे प्रमुख रूप से प्रभु चावला आजतक से, वीर सांघवी, एचटी मीडिया और एनडीटीवी की पत्रकार बरखा दत्त शामिल हैं।
 
रतन टाटा क्यो छिपा रहे हैं राडिया के राज
कॉरपोरेट घरानों की दलाली के आरोपों के चलते पूरे मीडिया जगत को शक की नजर से देखा जाने लगा है। नीरा राडिया ने .राजा को मंत्री बनने के लिए लॉबिंग कराए जाने के पीछे क्या मकसद था हजारों करोड़ के घोटाले के बाद ये पता चल ही गया। कॉरपोरेट घरानों में नाम आने से टाटा और अंबानी की भी फजीहत हुई है, राडिया के साथ टेप का खुलासा होने के बाद आखिर रतन टाटा इतना बौखलाए क्यों घूम रहे हैं, टेप में ऐसा क्या है जिसने रतन टाटा की नब्ज पकड़ ली है। फिलहाल 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है जहां सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री और .राजा समेत सरकार को बचाने वाली सीबीआई को कटघरे में खड़ा कर दिया। अपनी तीखी टिप्पणियों में कोर्ट ने कहा- सरकार भ्रष्टाचार पर काबू करने में नाकाम है। सरकार की भ्रष्टाचारी पॉलिसी किस हद तक कारगर साबित हो रही है इसका अंदाजा इसी बात से हो गया जब उसने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पीजे थॉमस को पहले तो सीवीसी बनाया, लेकिन जब बात 2जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच की आई तो विरोध के बाद थॉमस को घोटाले की जांच से बाहर कर दिया। वाह री सरकार...अब सीवीसी जैसे पदों पर बैठे लोग भी खाएंगे और खिलाएंगे

राजा तूने क्या किया, मुझे ही ले डूबा

भ्रष्टाचार का सरकारी नंगापन इस हद तक बढ़ गया है कि सरकार बचाने के लिए सत्ता मोही कांग्रेस पार्टी देश को बेचने के लिए तैयार बैठी है। फिर चाहे वह आदर्श सोसायटी घोटाला हो, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला हो या फिर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, सरकार भरी बैठी है हर किसी को एक मौके जरूर दे रही है। लेकिन मीडिया में मचा हडकंप इस बार जल्द शांत होते नहीं दिखता। पत्रकारों की मांग है कि भ्रष्टाचारी राजा का साथ देने वाले वरिष्ठ पत्रकारों की पूरी सच्चाई देश के सामने जरूर आनी चाहिए ताकि इस प्रोफेशन से गुंडे और दलालों की विदाई हो सके। इस विवाद के बाद सबसे बड़ा सवाल ये उठने लगा है कि क्या पत्रकार सत्ता को आइना दिखाने और उसे सच की कसौटी पर कसने की बजाए सत्ताधीशों के लिए बिचौलिए का काम करने लगे हैं? जो पत्रकार समाज तक सच पहुँचाने का दावा करते हैं वो अगर उद्योगपतियों और नेताओं के लिए संदेशवाहक का काम करने लगेंगे तो क्या जनता आज़ाद प्रेस पर भरोसा बरकरार रख पाएगी?

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Thursday, September 9, 2010

कहिए प्रधानमंत्री जी कब इस्तीफा दे रहे हैं ?

7:59 PM

जयपुर के एक गांव फागी में सरकारी कंपनी बीएसएनएल ने 1हजार बीपीएल परिवारों को मुफ्त मोबाइल बांटे। लेकिन राजस्थान सरकार ने इन्हीं बीपीएल परिवारों को मिलने वाले गेहूं का कोटा 35 किलो से घटाकर 25 किलो कर दिया। जरूरत अनाज की थी लेकिन सरकार को लगता है इन लोगों को रोटी से ज्यादा मोबाइल की जरूरत है। राज्य में बीपीएल धारकों की संख्या 24 लाख है, फिर सरकार ने केवल 1हजार लोगों को ही मुफ्त मोबाइल क्यों बांटे। बीपीएल परिवारों को बांटे गए मोबाइल का उपयोग वे कितना कर पाते हैं ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन गरीबी दूर करने के सरकार के ऐसे प्रयासों से तो ऐसा ही लगता है कि सरकार गरीबी का केवल मजाक उड़ा रही है।
 

संसद में पक्ष-विपक्ष का काम एक दूसरे पर आऱोप लगाना और छींटाकशी करना रह गया है, लेकिन सदन के बाहर भी ये जन प्रतिनिधि मौके नहीं चूकते और गाहे बगाहे मीडिया के सामने अपनी भड़ास मिटाते रहते हैं। ऐसे ही एक टीवी शो में सीपीआई नेता अतुल अंजान ने सरकार को गैर पढ़े लिखों की जमात कह दिया, ये बयान ज्यादा सुर्खियां तो नहीं बटोर सका लेकिन केंद्र को एक आईना जरूर दिखा दिया। भंडारण की कमी का रोना रो रही केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था “यदि अनाज को रखने की जगह नहीं है सड़ाने से अच्छा है गरीबों में बांट दिया जाए”। लेकिन केंद्र के बिजी मंत्री शरद पवार को सुप्रीम कोर्ट का आदेश,आदेश नहीं सलाह लगी। शरद पवार कन्फ्यूज हो गए और कह दिया,“सुप्रीम कोर्ट ने हमें सुझाव दिया है,ऐसा करना आसान नहीं है”। जब कार्यवाही नहीं हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने फिर सरकार को डांट पिलाई। लेकिन सरकार डांट खाने के बाद भी सरकार नहीं सुधरी...अबकी बार मैदान में स्वयं पीएम उतर गए। मनमोहन सिंह ने कहा कि “अनाज गरीब परिवारों में नहीं बांटा जा सकता,न्यायपालिका सरकार की नीतियों में दखल न दे”। बिल्कुल सही कहा..कानून बनाने वालों को कोई कानून सिखाए तो गुस्सा तो आएगा ही,अनाज मत लो मोबाइल ले लो,मोबाइल से बात करोगे तो पेट भर जाएगा। फिर महंगाई के मुद्दे पर बोले प्रधानमंत्री, “मुझे नहीं पता महंगाई कब कम होगी मैं कोई ज्योतिष नहीं हूं” अरे भाई आप ज्योतिष नहीं है तो सरकार क्यों चला रहे हैं। हमारे देश में लोग प्रधानमंत्री को किसी ज्योतिष से कम नहीं समझते हैं जिसे सब कुछ पता होता। है।

सरकार दिन पर दिन असंवेदनशील होती जा रही है, मंत्रियों की बातें तो बेलगाम थी हीं. अब पीएम भी इस वाकयुद्ध में कूद पड़े हैं। कॉमनवेल्थ में घोटाले का दंश,कश्मीर में विद्रोह और महंगाई से हार चुकी सरकार को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। सरकार के मंत्री अपनी शर्तों पर काम करते हुए औने पौने बयान दे रहे हैं,मंत्रियों के लिए कभी भगवा रंग आतंक का पर्याय बन जाता है तो कभी हार्डकोर नक्सली के मारे जाने की जांच की बात कही जाती है। दोहरे चरित्र वाली सरकार ने आईपीएल में नाम आने पर थरूर को थलग कर दिया लेकिन घोटालों के महाराजा ए.राजा का पावर अभी भी बरकरार रखा है। यूपीए अध्यक्ष कहती है किसानों के हितों का ख्याल रखा जाए। लेकिन कैसे, जिस किसान का कोई खैरख्वाह नहीं, उस की जमीन पर राजनीति हो रही है उसकी जमीन छीनकर उसे जबर्दस्ती करोड़पति बनाया जा रहा हैं सरकार के पास अब मुद्दे नहीं हैं किस मुंह से बिहार,बंगाल चुनाव लड़ेगी पता नहीं। सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार चरम पर है,सरकारी नीतियां खोखली साबित हो रही है,खाद्यान्न बढ़ रहा है,साथ-साथ महंगाई की मार भी बढ़ी है। बिचौलियों के हाथों की कठपुतली बन चुकी सरकार के पास खुद बचाने का छोड़ो भागने का भी रास्ते नहीं बचा है। हमारे शांत स्वभावी अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की नीतियां गड़बड़ा रही हैं क्या यही उनकी बौखलाहट का कारण भी बन रही है। ऐसे वक्त में ये बात मनमोहन सिंह के लिए बिल्कुल फिट बैठती नजर आती है... कहिए प्रधानमंत्री जी कब इस्तीफा दे रहे हैं।


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Tuesday, August 31, 2010

आतंकवाद का बंटवारा !!

4:02 PM

गृहमंत्री का बयान- भारत में भगवा आतंकवाद फैल रहा है

भारत के लोगों ने कई बंटवारे देखे है, पहले देश को 2 भागों में बंटता हुआ देखा, फिर राज्यों के कई टुकड़े होते हुए देखे, फिर आरक्षण की आग से युवाओं के दिलों को बंटते हुए देखा। लेकिन अब एक नया बंटवारा सामने आया है,आतंकवाद का बंटवारा। बात ज्यादा पुरानी नहीं है मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस  धमाकों समेत कुछ अन्य वारदातों में कुछ संगठनों के शामिल होने की बात सामने आई थी। कुछ लोगों ने इसे हिंदू आतंकवाद का नाम दिया था। आतंकवाद के कई स्वरूप और नाम सामने आ रहे हैं। ऐसे में आतंकवाद का इंडेक्स बनाना सरकार की जिम्मेदारी थी और इसको सरकार के मंत्री बखूबी निभा रहे हैं। 

आतंकवाद को रंगों, धर्मों से जोड़ना कितना सही है?

बात करें देश के गृह मंत्री पी चिदंबरम की तो उनका ये बयान, ‘‘भारत में युवकों और युवतियों को कट्टर बनाने के प्रयास बंद नहीं हुए हैं। हाल ही में हुए कई बम विस्फोटों से भगवा आतंकवाद का नया स्वरूप सामने आया है।’’ पर हंगामा बरपा हुआ है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। देश का गृह मंत्री जब अपनी वाक् बुद्धि छोड़ कर ऐसे बयान देने लग जाए तो देश का ध्रुवीकरण की ओर जाना तय सा लगता है। चिदंबरम के भगवा आतंकवाद पर बयान की चौतरफा आलोचना हो रही है। बीजेपी, शिवसेना समेत कई दलों ने इस मुद्दे पर लोगसभा की कार्यवाही मे २ दिनों तक अड़ंगा डाला और कड़ा विरोध सरकार जताकर प्रधानमंत्री से माफी मांगने तक की बात कह दी। इस मु्द्दे पर गुजरात में चिदंबरम के खिलाफ केस भी दर्ज कराया गया है।

भारत की आजादी का प्रतीक रहा केसरिया रंग को आज आतंकवाद का रंग कहकर उन शहीदों का अपमान किया है जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। हालांकि चिदंबरम के इस बयान पर कुछ लोगों का मानना है कि चिदंबरम साहब ने ये सब किसी के विशेष व्यक्ति के कहने पर बोला है। बढ़ते भ्रष्टाचार और महंगाई कम न कर पाने का मलाल कर रही सरकार के असली मुद्दे जैसे कॉमनवेल्थ,नक्सल समस्या आदि से विपक्ष को भटकाना चाहती है। लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने चिदंबरम की टिप्पणी को सही ठहराया। ये वही दल है जो कहते रहते हैं आतंकवाद को किसी मजहब या किसी समुदाय से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

भारत में बेरोजगारी, भुखमरी दे रही है आतंकवाद को बढ़ावा
किसी मंत्री ने बयान दिया और कांग्रेस ने बयान से पल्ला झाड़ लिया, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। अपने मंत्रियों के बयानों से शर्मसार होती रही कांग्रेस के लिए अब ये आम बात या कहें मजबूरी बन चुकी है। “आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता,शब्दों के चयन का ख्याल रखना चाहिए”। कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी ने ये बयान देकर चिदंबरम के बयान पर कांग्रेस की आपत्ति दर्ज करा दी। लेकिन सरकार के वरिष्ठ मंत्री को ऐसा बयान देने की आखिर क्या मजबूरी रही होगी। क्या देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की समस्या इतनी गंभीर होती जा रही है जिससे चिदंबरम साहब खुद डर गए है।

नेताओं का राजनीतिक बयानबाजी न करना अपने पेशे से खिलाफत करने जैसा है। नेताओं के लिए आज देश से बढ़कर वोट बैंक राजनीति है। इसलिए समय समय पर वे विवादास्पद बयान देते रहते हैं।लेकिन मंत्रियों का ऐसा करना कहां तक उचित है,  आतंकवाद को धर्मों और रंगों से जोड़ना कितना सही है?आतंकवाद की किसी भी चीज से तुलना करना सूक्ष्म मानसिकता का परिचायक है। आतंकवाद को बांटने वाला चिदंबरम का ये बयान कम से कम आतंकवाद या कट्टरवाद को रोकने में तो सफल नहीं हो सकता।

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Sunday, August 15, 2010

35 साल के 'शोले'

5:01 AM


            15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई फिल्म "शोले" को प्रदर्शित हुए आज 35 साल हो गए साढ़े तीन दशक का लंबा समय बीत जाने के बाद भी शोले के गब्बर, जय, वीरू और बसंती का जादू अब भी बरकरार है। शोले ने आज भी भारतीय जनमानस में अपनी छाप गहराई तक छोड़ रखी है। कितनी ही फिल्में आईं लेकिन आम दर्शकों से लेकर फिल्म विशेषज्ञों के जेहन से 35 साल बाद भीशोलेही निकलती ही नहीं। देश के लोगों के दिल में बसी इस फिल्म के डायलॉग्स को आज भी अपनी बातों में शामिल करते हैं और छोटे से छोटा किरदार भी विज्ञापनों, प्रोमो, फिल्मों या धारावाहिकों में नजर जाता है।
जय, वीरू, ठाकुर और गब्बर के शोले
 निर्देशक रमेश सिप्पी की अविस्मरणीय फिल्म शोले के गब्बर, जय, वीरू और बसंती का जादू अब भी बरकरार है। फिल्म शोले में 2 दोस्तों की कभी खत्म होने वाली दोस्ती, एक विधवा का खामोश प्यार। एक तांगे वाली का बड़बोलापन। एक आदर्शवादी पुलिस अफसर का संघर्ष। एक डाकू की दिखाई गई हकीकत लोगों के दिलों मे आज भी बसी हुई  है।

गब्बर का जलवा आज भी कायम है
संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, जया भादुड़ी, हेमामालिनी ने जो अदाकारी की है वो आज किसी फिल्म में देखने को नहीं मिलती।इसी फिल्म से अमजद खान जैसे नए अभिनेता की एक खास पहचान बनी। वह हिंदी सिनेमा में एक सबसे प्रख्यात खलनायक बन गए। फिल्म बनने से पहले अमजद खान इस रोल के लिए दूसरे विकल्प के तौर पर थे। निर्माता गब्बर के किरदार के लिए डैनी डेंग्जोपा को लेना चाहते थे लेकिन डैनी व्यस्त थे। अंत में फिर अमजद खान को हीगब्बरके लिए चुना गया। फिल्म में असरानी,जगदीप और एक संवाद बोलने वाले मैकमोहन भी लोगों की यादों में बस गए। शोले में जगदीप ने सूरमा भोपाली का किरदार निभाया था जो आज भी दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर देता हैं। शोले में .के.हंगल से लेकर कालिया बने विजु खोटे ने अपने अभिनय से लोगों का दिल जीता। फिल्म मेंतेरा क्या होगा कालिया डायलॉगआज भी बड़ा लोकप्रिय है। यही नहीं शोले में केवल एक संवाद बोलने वाले मैकमोहन ने फिल्म में अपनी अमिट छाप छोड़ी जिसे कोई भुला नहीं सकता।

शोले में कालिया बने विजु और सांबा मैक मोहन
फिल्म में जेलर का किरदार निभाने वाले असरानी ने अग्रेजों के जमाने की खूब याद दिलाई। दर्शकों ने असरानी के रोल को खूब पसंद किया। असरानी को बाद कई फिल्मों इसी तरह के रोल करते नजर आए। शोले में जेल में सुरंग बनाने वाले सीन में दर्शकों को हंस हंस कर लोटने पर मजबूर ही कर दिया था।

सूरमा भोपाली बने जगदीप और अग्रेजों के जमाने के जेलर असरानी की जबर्दस्त कॉमेडी
शोले ने कमाई के मामले में भी रिकॉर्डे तोड़े और 3 करोड़ रुपए बजट में बनी इस फिल्म ने 7 अरब 68 करोड़ 81 लाख रुपए की कमाई की। शोले भारत की पहली ऐसी फिल्म थी जिसने देश के 100 से भी ज्यादा थिएटर्स में सिल्वर जुबली पूरी की थी। शोले जब रिलीज हुई थी तब देश में इमरजेंसी लगी हुई थी लेकिन फिर भी यह फिल्म मुंबई के मिनर्वा थिएटर में लगातार 5 साल तक चली।

शोले के निर्देशक रमेश सिप्पी
फिल्म को शुरूआत में फिल्म आलोचकों ने नकार दिया। लेकिन शोले की सफलता ने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। फिल्म की शूटिंग जिस गांव में हुई थी, गांववालों ने उसका नाम सिप्पीनगर रख दिया था। वर्ष 2006 में आयोजित 50वें फिल्मफेयर अवॉर्ड में इसेबेस्ट फिल्म ऑफ 50 ईयर्सका अवॉर्ड मिला था। इस फिल्म को बीबीसी ने भीफिल्म ऑफ मिलेनियमघोषित किया था। शोले एक कम्पलीट फिल्म थी। इसमें हंसी-मजाक, ड्रामा, एक्शन और लव स्टोरी सबकुछ था। यह तो परिवार के साथ ही देखने लायक भरपूर आनंद से लबरेज फिल्म रही है। इसकी खासियत इसकी स्क्रिप्ट थी जो हर मोमेंट पर अलग ही रोमांच देती है। यदि इन ३५ सालों की बात करें तो मुझे नही लगता कि शोले से किसी भी फिल्म की तुलना की जा सकती है। शोले सर्वश्रेष्ठ फिल्म थी, है और रहेगी।

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